वीडियो जानकारी:<br /><br />शब्दयोग सत्संग<br />28 जुलाई 2019<br />अद्वैत बोधस्थल ,ग्रेटर नॉएडा<br /><br />प्रसंग:<br /><br />श्रीम्द्भाग्वाद गीता (अध्याय 3, श्लोक 9)<br /><br />यज्ञार्थात्कर्मणोऽन्यत्र लोकोऽयं कर्मबन्धनः।<br />तदर्थं कर्म कौन्तेय मुक्तसङ्गः समाचर ॥<br /><br />भावार्थः<br />यज्ञ की प्रक्रिया ही कर्म है<br />इस यज्ञ की प्रक्रिया के अतिरिक्त जो भी किया जाता है<br />उससे जन्म-मृत्यु रूपी बन्धन उत्पन्न होता है, अत: हे कुन्तीपुत्र!<br />उस यज्ञ की पूर्ति के लिये संग-दोष से मुक्त रहकर<br />भली-भाँति कर्म का आचरण कर ।<br />___<br /><br />उपासना किसकी करें? निराकार की या साकार की?<br />यज्ञ का अर्थ क्या है?<br />संग-दोष से मुक्त रहकर कर्म कैसे करें?<br /><br />संगीत: मिलिंद दाते